शुक्रवार, 23 मार्च 2012

4 --// ये जाँ है माँ भारती के लिए //--


  • इश्क  में   हर  बात  मुनासीब  नही  /
    यार  प्यार  ही  तो  सब  कुछ  होता  नही  //

    है  बंधन  जीवन   के  और  कई  ,
    नाते  रिश्ते  भी  कितने   निभाने  है  /
    होती  बहार  किसी  एक  चमन  की  नही ,
    मुझको  सारे ही  गुल  खिलने  है  //

    पदचाप  बना  दे  पगडण्डी  कोई  ,
    राह  की  इसी  कोई  मै धुल  नही  /
    बिछ जाना  है   सबकी  राहों  में  ,
    ऐसा फुल  हूँ  कोई  शूल  नही   //

    है  मर्यादा कहाँ   गगन  की  कोई ,
    मुझको  सारी  धराओ  को  ढकना  है /
    मैं मचलता  हुआ  एक  सागर  हूँ ,
    सारी सरिताओ  को  मुझमे  समाना  है  / /

    है  पड़ाव  डाले  कितने  ही  कारवे ,
    है  ललक  सब में मुझको  पाने  की  /
    सुरों  को  छेड़ता  गीत  हूँ  मैं  एक  ,
    सबको तमन्ना  है  मुझको  गुनगुनाने  की  //

    ज़िद   है कैसी  की  मैं  बरसू  नही  ,
    प्यास बुझाना  है  मुझको  कितने  चातको  की /
    चाँद  चांदनी  का  सिर्फ होता नही  ,
    आश होता  है  वो  कितने  चकवो   की  //

    है  मुरत  पुजारी  की  जागीर  नही  ,
    कितने  थाल  है  आरती  के  लिए  /
    दिल लेकर   ना लेना  कोई  मेरी जान ,
    ये जाँ है  माँ भारती  के  लिए   //

मंगलवार, 13 मार्च 2012

3-- '' चिंतन ''/ '' मंथन ''


कोई  करता   चित्त   का '' चिंतन  '',कोई  मन  का ''  मंथन '' /
सत्ता  सुंदरी  को  पाने  का  ,सारा  है  ये  जतन //
शरह्दे रौंदते  दुश्मन  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
घायल  हिमालय  रोता  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
विष  घुला  है  वादियों  में  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
लहू  से  लोहित  है  घाटी,
किसको  है  ये  चिंता  /
चिंता  है  बस  कुर्सी  की  ,कुर्सी  पर  है  सारा  ध्यान  /
कोई  करता   चित्त   का '' चिंतन  '',कोई  मन  का ''  मंथन '' /
सत्ता  सुंदरी  को  पाने  का  ,सारा  है  ये  जतन //

प्यासी  धरती  प्यासे  लोग  ,
किया  नही  कोई  मंथन  /
अंधेरों  ने  सपने  निगले  ,
किया  नही  कोई  मंथन  /
कागजो  पर  बनती  सड़के  ,
किया  नही  कोई  मंथन  /
भ्रष्टाचार  ने  फन  फैलाया  ,
किया  नही  कोई  मंथन  /
मंथन  है  बस  सियासत  का  ,कैसे  बचे  ये  सिंहासन  /
कोई  करता   चित्त   का '' चिंतन  '',कोई  मन  का ''  मंथन '' /
सत्ता  सुंदरी  को  पाने  का  ,सारा  है  ये  जतन //

झगडे  होते   मस्जिद  मंदिर के  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
राज  खुलते  सब  अन्दर  के  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
जनसंख्या  हो  गई  विकराल  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
बेरोजगारी  करे  सवाल  ,
किसको  है  ये  चिंता  /
चिंता  है  पद  पाने  की  ,पदलोलुप  क्या  करे  मनन  /
कोई  करता   चित्त   का '' चिंतन  '',कोई  मन  का ''  मंथन '' /
सत्ता  सुंदरी  को  पाने  का  ,सारा  है  ये  जतन //

समस्याओ  से  कैसे  धयान  बंटे ,
यही  है    उनका   मंथन  /
फिर  सत्ता  में  कैसे  डटे ,
यही  है  उनका    मंथन  /
कहा  से  कैसे  करे  धांधली  ,
यही  है  उनका    मंथन  /
बंद  रास्तो  की  ढूंढे  गली  ,
यही  है  उनका    मंथन  /
मंथन  है  जागरुक  जनता  का  
कैसे  कुचले  उनका  फन   /
कोई  करता   चित्त   का '' चिंतन  '',कोई  मन  का ''  मंथन '' /
सत्ता  सुंदरी  को  पाने  का  ,सारा  है  ये  जतन //

रविवार, 11 मार्च 2012

2---- होली पर उड़ेगा गुलाल



होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
मचलेगा ये मन मोर ,थोड़ी सी जो भंग पीएगें /

कोई नही रोके आज, कोई नही टोकें /
आयेगे ना ऐसे,रंगने के बार बार मौके / /
जो भी करे ना नुकुर ,उसे तंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /

कैसे बचोगे अब ,रंगीलो की आई है टोली /
मस्ती भरी मन में ,खेलेगे हम तो होली //
चोरी से तुमको पकड़ ,दंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /

रंगेंगे सारा बदन ,अंग कोई रहे ना बाकी /
चढ़ेगा अब तो सुरूर ,पीलाये जा तू साकी / /
छोड़ेंगे ना अब हम ,तुमको संग कर लेंगे //
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /

रविवार, 4 मार्च 2012

1-- तेरी कमी माँ खलती है

चुपके  से  मन   मेरा   रोता  ,  आत्मा  जलती  है  //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
सर   से  मेरे  माँ तेरे ,
आँचल  की  छाया हट  गई  /
ऐसा क्या  अपराध  हुआ  माँ ,
मुझसे  तू  रूठ  गई /
अब  कहा  स्नेह  है वो  ममता  अब ना  मिलती  है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
चोट  मुझको  लगती  थी तो ,
दर्द तुझको  होता  था  /
कितनी  तू  होती  दुखी ,
दिल तेरा भी तो रोता था  /
याद तेरी आती  है ,कोई  माँ जो  सर  सहलाती  है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
अब कोई ना चाह मन  में  ,
बस  तुझे पाना  चाहूँ /
कोख  से तेरी फिर  ,
मै तो  जनम  लेना  चाहूँ /
बस यही एक यही  आरजू  , मन को  मेरे बहलाती   है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //