मंथन .............मेरी कविताये .............
रविवार, 10 अगस्त 2014
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
4 --// ये जाँ है माँ भारती के लिए //--
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इश्क में हर बात मुनासीब नही /
यार प्यार ही तो सब कुछ होता नही //
है बंधन जीवन के और कई ,
नाते रिश्ते भी कितने निभाने है /
होती बहार किसी एक चमन की नही ,
मुझको सारे ही गुल खिलने है //
पदचाप बना दे पगडण्डी कोई ,
राह की इसी कोई मै धुल नही /
बिछ जाना है सबकी राहों में ,
ऐसा फुल हूँ कोई शूल नही //
है मर्यादा कहाँ गगन की कोई ,
मुझको सारी धराओ को ढकना है /
मैं मचलता हुआ एक सागर हूँ ,
सारी सरिताओ को मुझमे समाना है / /
है पड़ाव डाले कितने ही कारवे ,
है ललक सब में मुझको पाने की /
सुरों को छेड़ता गीत हूँ मैं एक ,
सबको तमन्ना है मुझको गुनगुनाने की //
ज़िद है कैसी की मैं बरसू नही ,
प्यास बुझाना है मुझको कितने चातको की /
चाँद चांदनी का सिर्फ होता नही ,
आश होता है वो कितने चकवो की //
है मुरत पुजारी की जागीर नही ,
कितने थाल है आरती के लिए /
दिल लेकर ना लेना कोई मेरी जान ,
ये जाँ है माँ भारती के लिए //
इश्क में हर बात मुनासीब नही /
यार प्यार ही तो सब कुछ होता नही //
है बंधन जीवन के और कई ,
नाते रिश्ते भी कितने निभाने है /
होती बहार किसी एक चमन की नही ,
मुझको सारे ही गुल खिलने है //
पदचाप बना दे पगडण्डी कोई ,
राह की इसी कोई मै धुल नही /
बिछ जाना है सबकी राहों में ,
ऐसा फुल हूँ कोई शूल नही //
है मर्यादा कहाँ गगन की कोई ,
मुझको सारी धराओ को ढकना है /
मैं मचलता हुआ एक सागर हूँ ,
सारी सरिताओ को मुझमे समाना है / /
है पड़ाव डाले कितने ही कारवे ,
है ललक सब में मुझको पाने की /
सुरों को छेड़ता गीत हूँ मैं एक ,
सबको तमन्ना है मुझको गुनगुनाने की //
ज़िद है कैसी की मैं बरसू नही ,
प्यास बुझाना है मुझको कितने चातको की /
चाँद चांदनी का सिर्फ होता नही ,
आश होता है वो कितने चकवो की //
है मुरत पुजारी की जागीर नही ,
कितने थाल है आरती के लिए /
दिल लेकर ना लेना कोई मेरी जान ,
ये जाँ है माँ भारती के लिए //
मंगलवार, 13 मार्च 2012
3-- '' चिंतन ''/ '' मंथन ''
कोई करता चित्त का '' चिंतन '',कोई मन का '' मंथन '' /
सत्ता सुंदरी को पाने का ,सारा है ये जतन //
शरह्दे रौंदते दुश्मन ,
किसको है ये चिंता /
घायल हिमालय रोता ,
किसको है ये चिंता /
विष घुला है वादियों में ,
किसको है ये चिंता /
लहू से लोहित है घाटी,
किसको है ये चिंता /
चिंता है बस कुर्सी की ,कुर्सी पर है सारा ध्यान /
कोई करता चित्त का '' चिंतन '',कोई मन का '' मंथन '' /
सत्ता सुंदरी को पाने का ,सारा है ये जतन //
प्यासी धरती प्यासे लोग ,
किया नही कोई मंथन /
अंधेरों ने सपने निगले ,
किया नही कोई मंथन /
कागजो पर बनती सड़के ,
किया नही कोई मंथन /
भ्रष्टाचार ने फन फैलाया ,
किया नही कोई मंथन /
मंथन है बस सियासत का ,कैसे बचे ये सिंहासन /
कोई करता चित्त का '' चिंतन '',कोई मन का '' मंथन '' /
सत्ता सुंदरी को पाने का ,सारा है ये जतन //
झगडे होते मस्जिद मंदिर के ,
किसको है ये चिंता /
राज खुलते सब अन्दर के ,
किसको है ये चिंता /
जनसंख्या हो गई विकराल ,
किसको है ये चिंता /
बेरोजगारी करे सवाल ,
किसको है ये चिंता /
चिंता है पद पाने की ,पदलोलुप क्या करे मनन /
कोई करता चित्त का '' चिंतन '',कोई मन का '' मंथन '' /
सत्ता सुंदरी को पाने का ,सारा है ये जतन //
समस्याओ से कैसे धयान बंटे ,
यही है उनका मंथन /
फिर सत्ता में कैसे डटे ,
यही है उनका मंथन /
कहा से कैसे करे धांधली ,
यही है उनका मंथन /
बंद रास्तो की ढूंढे गली ,
यही है उनका मंथन /
मंथन है जागरुक जनता का
कैसे कुचले उनका फन /
कोई करता चित्त का '' चिंतन '',कोई मन का '' मंथन '' /
सत्ता सुंदरी को पाने का ,सारा है ये जतन //
रविवार, 11 मार्च 2012
2---- होली पर उड़ेगा गुलाल
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
मचलेगा ये मन मोर ,थोड़ी सी जो भंग पीएगें /
कोई नही रोके आज, कोई नही टोकें /
आयेगे ना ऐसे,रंगने के बार बार मौके / /
जो भी करे ना नुकुर ,उसे तंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
कैसे बचोगे अब ,रंगीलो की आई है टोली /
मस्ती भरी मन में ,खेलेगे हम तो होली //
चोरी से तुमको पकड़ ,दंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
रंगेंगे सारा बदन ,अंग कोई रहे ना बाकी /
चढ़ेगा अब तो सुरूर ,पीलाये जा तू साकी / /
छोड़ेंगे ना अब हम ,तुमको संग कर लेंगे //
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
मचलेगा ये मन मोर ,थोड़ी सी जो भंग पीएगें /
कोई नही रोके आज, कोई नही टोकें /
आयेगे ना ऐसे,रंगने के बार बार मौके / /
जो भी करे ना नुकुर ,उसे तंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
कैसे बचोगे अब ,रंगीलो की आई है टोली /
मस्ती भरी मन में ,खेलेगे हम तो होली //
चोरी से तुमको पकड़ ,दंग कर देंगे /
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
रंगेंगे सारा बदन ,अंग कोई रहे ना बाकी /
चढ़ेगा अब तो सुरूर ,पीलाये जा तू साकी / /
छोड़ेंगे ना अब हम ,तुमको संग कर लेंगे //
होली पर उड़ेगा गुलाल गोरिया को रंग देंगे /
शनिवार, 10 मार्च 2012
रविवार, 4 मार्च 2012
1-- तेरी कमी माँ खलती है
चुपके से मन मेरा रोता , आत्मा जलती है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
सर से मेरे माँ तेरे ,
आँचल की छाया हट गई /
ऐसा क्या अपराध हुआ माँ ,
मुझसे तू रूठ गई /
अब कहा स्नेह है वो ममता अब ना मिलती है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
चोट मुझको लगती थी तो ,
दर्द तुझको होता था /
कितनी तू होती दुखी ,
दिल तेरा भी तो रोता था /
याद तेरी आती है ,कोई माँ जो सर सहलाती है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
अब कोई ना चाह मन में ,
बस तुझे पाना चाहूँ /
कोख से तेरी फिर ,
मै तो जनम लेना चाहूँ /
बस यही एक यही आरजू , मन को मेरे बहलाती है //
सुख के सब साधन है लेकिन,तेरी कमी माँ खलती है //
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